कविता

सिर्फ प्रेम का इज़हार नहीं, सिर्फ वसंत की फुहार नहीं,
सिर्फ वर्षा का झंकार नहीं, सिर्फ अलंकारों का अंबार नही।

यह एकांत का उपहार भी है, यह उम्र का उधार भी है,
सन्नाटे का संहार भी है, शब्दों का व्यापार भी है।

एक व्याकुल पुकार, सिहरता अंगार भी है,
भाव, आवेग, आवेशों को द्वार
आंसुओं का आकार, अंतरद्वंद की पुकार भी है।

कविता सिर्फ सौंदर्य की उपमा नहीं, कुरूपता की नग्नता भी है।
कविता
महज़ अभिव्यक्ति की आज़ादी नहीं, अभिव्यक्ति की विवशता भी है।

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